राजीव दीक्षित एक भारतीय वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और आयुर्वेद के दृढ़ समर्थक थे, जो 30 नवंबर 1967 को पैदा हुआ था और 30 नवंबर 2010 को मर गया था। उनका जीवन भारत में आयुर्वेद और स्वदेशी चिकित्सा को बढ़ावा देने में लगा। राजीव दीक्षित ने न केवल आयुर्वेद के पुराने ज्ञान को जनता तक पहुँचाया, बल्कि लोगों को आत्मनिर्भर बनाकर अपनी बीमारियों का इलाज स्वयं करने की प्रेरणा भी दी। लाखों लोग आज भी उनकी शिक्षाओं और व्याख्यानों से प्रेरणा लेते हैं। Read More Click Here
आयुर्वेद के प्रति समर्पण राजीव दीक्षित का ?
राजीव दीक्षित का मानना था कि आयुर्वेद ही एकमात्र चिकित्सा पद्धति है जो एक व्यक्ति को रोगमुक्त करके एक स्वस्थ जीवन की गारंटी देती है। उनके पास प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों, विशेष रूप से वाग्भट्ट और महर्षि चरक के “अष्टांग हृदयम” और “अष्टांग संग्रह”, का व्यापक अध्ययन था। अपने व्याख्यानों में, उन्होंने बताया कि 85% स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान बिना डॉक्टर के बिना साधारण घरेलू सामग्री और आयुर्वेदिक सिद्धांतों का उपयोग करके किया जा सकता है।
वर्तमान एलोपैथिक दवाएँ अक्सर रोगों का स्थायी समाधान नहीं देतीं और इनके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। आयुर्वेद, इसके विपरीत, बिना किसी दुष्प्रभाव के रोगों को जड़ से खत्म करता है, क्योंकि यह प्राकृतिक और सस्ता है। उन्होंने लोगों को घर में मौजूद हल्दी, अदरक, तुलसी, मेथी और अन्य औषधीय पौधों का उपयोग करने की सलाह दी।
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स्वदेशी चिकित्सा का प्रचार राजीव दीक्षित ने 2007.
2007 में राजीव दीक्षित ने चेन्नई में सात दिनों तक आयुर्वेद और स्वदेशी चिकित्सा पर व्याख्यान दिया, जिसका उद्देश्य था कि लोगों को बिना दवा के अपनी बीमारियों का इलाज करना सिखाया जाए। इस प्रक्रिया को उन्होंने “स्वदेशी चिकित्सा” कहा। विदेशी दवा कंपनियों पर निर्भरता कम करना उनका मुख्य लक्ष्य था।
विशेष रूप से वात, पित्त और कफ के सिद्धांतों पर आधारित आयुर्वेदिक उपचारों को उन्होंने सरल शब्दों में समझाया। उदाहरण के लिए, उन्होंने आहार और जीवनशैली में बदलाव करने के साथ-साथ त्रिफला चूर्ण और गुनगुने पानी का सेवन करने जैसे प्राकृतिक उपाय सुझाए, जैसे कब्ज।
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प्रमुख योगदान राजीव दीक्षित का ?
आयुर्वेदिक लेखों का प्रसार: “रोगी स्वयं चिकित्सक” और “सम्पूर्ण प्राकृतिक चिकित्सा” राजीव दीक्षित की कई पुस्तकें हैं। ये पुस्तकें आयुर्वेद और होम्योपैथी के सिद्धांतों पर आधारित हैं और आम लोगों के लिए सहज हैं।
देशभक्ति: उन्हें स्वदेशी उत्पादों और आयुर्वेदिक उपचारों को अपनाने का आह्वान किया और विदेशी दवा कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें लगता था कि विदेशी कंपनियाँ भारत में ऐसी दवाएँ बेच रही हैं जो कई देशों में प्रतिबंधित हैं।
भारत स्वाभिमान अभियान: 5 जनवरी 2009 को राजीव दीक्षित ने भारत स्वाभिमान आंदोलन की शुरुआत की, जिसका लक्ष्य स्वदेशी विचारधारा को प्रोत्साहित करना और योग और आयुर्वेद के माध्यम से लोगों को स्वस्थ बनाना था।
सार्वजनिक भाषण: उनके व्याख्यानों में भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्वदेशी अर्थव्यवस्था के अलावा आयुर्वेदिक उपचार भी बताए गए। आज भी उनके विचारों को उनके यूट्यूब चैनल और ऐप्स ने जीवित रखा है।
जीवन और संघर्ष राजीव दीक्षित का ?
राजीव दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1967 को अलीगढ़ जिले के नाह गांव में हुआ था। उन्होंने एमटेक की पढ़ाई की और एपीजे अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिकों के साथ काम किया। 1984 में भोपाल गैस त्रासदी ने उन्हें विदेशी कंपनियों के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा दी। 1992 में, उन्होंने “आजादी बचाओ आंदोलन” शुरू किया, जिसका लक्ष्य था कि भारत को विदेशी कंपनियों के आर्थिक शोषण से मुक्त कर दिया जाए।
उनका जीवन शांत और समर्पित था। वे हमेशा अपने साथ एक थैला रखते थे जिसमें होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक औषधियाँ होती थीं। 15 वर्षों तक वे स्वयं आयुर्वेदिक सिद्धांतों का पालन करते रहे और किसी चिकित्सक से नहीं मिले।
मृत्यु और विवाद राजीव दीक्षित का ?
30 नवंबर 2010 को छत्तीसगढ़ के भिलाई में राजीव दीक्षित का अचानक निधन हुआ। उनकी मृत्यु हृदयाघात से हुई थी। क्योंकि वे विदेशी कंपनियों और उनके बुरे प्रभावों के खिलाफ मुखर थे, कुछ लोगों का मानना है कि उनकी मृत्यु में साजिश थी। हालाँकि, बाबा रामदेव ने कहा कि उनकी मृत्यु से पहले दीक्षित से बातचीत हुई थी, जिसमें उसने एलोपैथिक दवाएँ लेने से इनकार कर दिया था, इसलिए ये आरोप निराधार थे।
आज भी प्रासंगिकता राजीव दीक्षित का ?
लाखों लोग आज भी राजीव दीक्षित की शिक्षाओं से प्रेरित हैं। लोगों को उनके पुस्तकों, ऐप्स और यूट्यूब चैनलों के माध्यम से आयुर्वेदिक उपचारों और स्वदेशी जीवनशैली को अपनाने की प्रेरणा मिल रही है। उनके विचारों ने स्वास्थ्य क्षेत्र ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीयता और स्वदेशी भावना में भी बदलाव लाया।